इस स्पेसक्राफ्ट के जरिए आप कर सकते हैं अरबों प्रकाश वर्ष की यात्रा मिनटों में।
यह स्पेसक्राफ्ट
टाइम मशीन नहीं हैं, लेकिन फिर भी कर सकते हैं इसमें समय यात्रा,
जानिए क्या है ये स्पेसक्राफ्ट और इसकी खूबियां।
इंसान कभी भी अंतरिक्ष को पूरी तरह से नहीं देख
सकता क्यूकि अंतरिक्ष है ही इतना विशाल और यह बिग बैंग के बाद से लगातार फ़ैल रहा
है। इसलिए आज भी ऐसी बहुत सारी चीज़ें अंतरिक्ष में हैं जिनके बारे में हम नहीं
जानते हैं। खैर अगर इंसान अंतरिक्ष में दूर तक जाना चाहता है, तो उसे अंतरिक्ष में
लाइट की स्पीड से भी ज्यादा तेज़ी से ट्रेवल करने लायक बनना होगा, हमारा सूर्य एक
तारा है जिसका इंधन कभी ना कभी खत्म जरुर होगा, या पृथ्वी पर कोमेट्स, एस्टेरोइड,
किसी अनजान ग्रह से टक्कर, अनजान ब्लैकहोल से
पृथ्वी का सामना, या हजारो प्रकाश वर्ष दूर किसी तारे के फटने से हुई गामा रे
बर्स्ट से भी पृथ्वी से जीवन खत्म हो सकता है, ऐसे में इन्सान को पृथ्वी जैसे किसी
दूसरे ग्रह की तलाश भी करनी होगी, और ऐसा ग्रह हमारी आकाशगंगा से दूर किसी अन्य
आकाशगंगा में भी हो सकता है, जहाँ तक पहुंचना इन्सान
के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी, जिसके लिए हमें एक ऐसे स्पेसक्राफ्ट को डेवलप करना
होगा जो लाइट से भी ज्यादा तेज़ी से ट्रेवल कर सके। सुनने में यह बात आज के समय में
बेतुकी ही क्यों न लग रही हो, लेकिन हकीकत तो यह है की आने वाले भविष्य में
शायद हम अंतरिक्ष में लाइट से भी ज्यादा रफ्तार में सफर कर रहें होंगें। वैसे बता
दूँ की ऐसा करने में हमारी मदद करेगी Warp Drive की तकनीक।
तो, सवाल उठता है कि आखिर यह Warp Drive की तकनीक क्या है ? कैसे यह हमारी अंतरिक्ष में यात्रा करने में मदद करेगी ? वैसे वैज्ञानिक स्पेस लैब्स में इस टेक्नोलॉजी पर बेस्ड एक स्पेशल स्पेसक्राफ्ट बनाने में लगे हुए हैं, जो लाइट से भी ज्यादा तेज़ी से ट्रेवल करने को मुमकिन कर देगी।
जर्मनी के गोटिंगेन यूनिवर्सिटी के स्पेस
साइंटिस्ट एरिक लेंट्ज़ ने इसी तरह के वार्प इंजन को बनाने के लिए एक थ्योरीटिकल
सोल्यूशन दिया है, अगर इस तरह के इंजन बनाए जा सके, तो इन्सान हजारो लाखो
सालों की जगह कुछ की महीनो में आस-पास के ग्रहों तक पहुँचने में और लौटने में सक्षम
हो जायेगा। लेकिन इसमें सबसे बड़ी प्रॉब्लम समस्या यह है कि आइंस्टीन के थ्योरी ऑफ़
रिलेटिविटी के अनुसार, किसी भी चीज के लिए लाइट की स्पीड से तेज ट्रेवल
करना असंभव है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जब एक ऑब्जेक्ट तेजी से मूव करता है तो उसका मास भी बढने
लगता है, इसलिए जब तक आप लाइट की स्पीड तक पहुंचते हैं, तब ऑब्जेक्ट का
मास इनफिनिटी तक पहुँच जायेगा, यानि इतना ज्यादा मास कि जिसे कैलकुलेट भी नहीं
किया जा सकता, और इतने ज्यादा मास वाले ऑब्जेक्ट को एक्सीलरेट करने के लिए उतनी ही
एनर्जी की जरुरत होगी, जो की आज की टेक्नोलॉजी में पॉसिबल नहीं है।
1994 में, मैक्सिकन
फिजिसिस्ट मिगुएल अलक्युबेर ने वार्प ड्राइव के लिए एक डिजाइन की रूपरेखा तैयार की
थी जो किसी भी साइंटिफिक लॉज़ को तोडे बगैर लाइट से भी ज्यादा तेजी से ट्रेवल को
पॉसिबल कर देगी।
इस तकनीक में एक ऑब्जेक्ट के चारों ओर नेगेटिव
एनर्जी का एक बबल जनरेट किया जायेगा, जो ऑब्जेक्ट के आगे की
स्पेस टाइम की फैब्रिक को कॉन्ट्रैक्ट कर देगा और ऑब्जेक्ट के पीछे की स्पेस टाइम
एक्स्पैंड हो जाएगी, फैल जाएगी। वहीँ सेंटर में स्पेसटाइम का एक "फ्लैट"
एरिया भी होगा जहां इंसान आराम से स्पेसक्राफ्ट के अन्दर बैठ कर ट्रेवल कर पायेगा, और स्पेस में आगे
बढते हुए स्पेसक्राफ्ट में मौजूद इंसान को ऐसा महसूस भी नहीं होगा कि वो इतनी तेज़ी
से अंतरिक्ष में आगे बढ़ रहा है।
बेशक, सैधांतिक रूप में, लाइट की स्पीड से
ज्यादा स्पीड में ट्रेवल करना संभव है, अगर स्पेसक्राफ्ट के
चारों ओर बाहरी अंतरिक्ष में डार्क एनर्जी को रिडिस्ट्रीब्यूट कर दिया जाये, ताकि स्पेसक्राफ्ट
के पीछे एक्सेस एनर्जी हो और स्पेसक्राफ्ट के फ्रंट में नेगेटिव एनर्जी का एक एरिया
बन सके।
लेकिन वर्तमान में हम डार्क एनर्जी के बारे में
कुछ भी नहीं जानते हैं, वहीँ आइंस्टीन के थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी के
अनुसार, किसी भी पार्टिकल मैटर को भारी मात्रा में रिडिस्ट्रीब्यूट
करने के लिए, बहुत ज्यादा एनर्जी की जरुरत होगी।
पिछले वार्प ड्राइव सुझावों को स्टडी करते समय, एरिक लेंट्ज़ ने महसूस
किया कि स्पेसटाइम बबल के कुछ कॉन्फ़िगरेशन थे जिन्हें अनदेखा कर दिया गया था। इन
बबल्स ने सॉलिटोन्स यानि कॉम्पैक्ट तरंगों का रूप ले लिया जो अपने शेप को खोए बिना
तेज़ गति से ट्रेवल करते हैं।
इन सॉलिटोन्स के लिए
हमे नेगेटिव एनर्जी की जरूरत पड़ेगी लेकिन फिजिक्स के मुताबिक ऐसा कोई भी क्लासिकल सोर्स मौजूद
नहीं जिससे नेगेटिव एनर्जी क्रिएट की जा सके, इस रिसर्च पेपर में एक सोलिटोन की
बात कही गयी है जो प्योरली पॉजिटिव एनर्जी सोर्स से बनाई जाएगी और जिसमें लाइट से
भी ज्यादा सुपर स्पीड में ट्रेवल करने की कैपेबिलिटी भी होगी।
सोलिटोन को यह हाई
एनर्जी प्लाज्मा और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फ़ील्ड्स से पैदा की गयी एनर्जी से मिलेगी।
यह हाइपर फ़ास्ट सॉलिटोन्स का पहला एग्जामपल है जो इन्सान की जानि पहचानी सोर्स से क्रिएट
किया जा सकेगा।
पानी की तरंगों, वायुमंडलीय गतिविधियों,
बादलों की अजीब संरचनाओं, में सॉलीटॉन को देखा जा सकता है।
लेंट्ज़ ने पाया कि
आइंस्टीन के किसी भी इक्वेसन को तोड़े बिना और किसी भी नेगेटिव एनर्जी की जरुरत के
बिना, पारंपरिक एनर्जी सोर्सेज का यूज़ करके कुछ सॉलिटोन्स को कॉन्फ़िगर किया जा सकता
है, बनाया जा सकता है।
अगर हम जरुरत के
मुताबिक पॉवर को गेनरेट करने में कामयाब हों, तो वार्प बबल के अंदर
प्रॉक्सिमा सेंटॉरी, जो हमारे सौरमंडल का सबसे करीबी तारा है, इसकी यात्रा, में हमें, केवल चार साल लगेंगे
जो वर्तमान में मौजूद टेक्नोलॉजी
के ज़रिये 50,000 सालों से भी कहीं ज्यादा सालों में पूरी होगी।
वैज्ञानिकों को अब यह
पता लगाना है कि आज की टेक्नोलॉजी की सीमा के भीतर इस हाई एनर्जी को कैसे लाया जाए, जैसे कि एक बड़ा
न्यूक्लियर पॉवर प्लांट। अगले स्टेप में हम अपने पहले प्रोटोटाइप को डेवलप करेंगे
जो लाइट से भी ज्यादा तेज़ी से ट्रेवल करने के सपने को साकार कर देगा।
वार्प ड्राइव टेक्नोलॉजी को बनने में अभी काफी वक़्त है, लेकिन वैज्ञानिकों को पूरा विश्वास है की यह एक दिन जरुर बनेगा। यह अंतरिक्ष में हमारी स्पेसक्राफ्ट को लाइट से लगभग 10 गुना ज्यादा तेजी से ट्रेवल करने में सक्षम बना देगा और इसके साथ ही हम समय यात्रा भी कर पायेंगें।
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