मेक इन इंडिया स्वदेशी अर्जुन टैंक क्या भारतीय सेना के लिए
है चिंता की बात ?
क्या मेक इन इंडिया और आत्मानिभारत भारत की सैन्य खरीद की डोमेस्टिक
योजनाएं हथियारों और हथियारों की क्वालिटी से समझौता करती हैं जिनका इस्तेमाल
भविष्य में भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा किया जाना है ?
यह प्रश्न बेहद महत्वपूर्ण है, जबकि डिफेन्स मिनिस्ट्री ने हाल ही में 8,400 करोड़ रुपये की लागत से बने 118 अर्जुन मार्क 1ए मेन बैटल टैंक्स को
भारतीय सेना में शामिल करने की मंजूरी दी है।
दरअसल, 14 फरवरी को चेन्नई की अपनी यात्रा के दौरान, प्रधान मंत्री नरेंद्र
मोदी ने ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड के हैवी व्हीकल फैक्ट्री अवाडी में आर्मी चीफ
जनरल नरवणे को स्वदेशी रूप से डेवेलप अर्जुन (मार्क 1ए) टैंक सौंपा है।
अब जबकि यह सिंबॉलिक हैण्डोवर पूरा हो गया है, अब एक फॉर्मल कॉन्ट्रैक्ट पर साइन करने के बाद पहले अर्जुन मार्क-1ए की डिलीवरी 30 महीनों के भीतर शुरू होगी, जिसमें सभी 118 यूनिट्स को चार से पांच सालों के भीतर डिलीवर किया जाएगा।
क्या भारतीय सेना इस कॉन्ट्रैक्ट से खुश है? तकनीकी रूप से कहा जाए तो
इससे दुखी होने का कोई कारण नहीं है क्योंकि MBT यानि मेन बैटल
टैंक्स पर कई टेस्ट करने के बाद ही एक साल पहले सीनियर ऑफिसर्स ने इस टैंक को
मंजूरी दे दी थी। और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि यह टैंक उन सभी फीचरर्स से
लेस है जो सेना ने खुद मांगी थी। यह टैंक 14 मेजर इम्प्रूवमेंट्स के साथ आयें हैं
जो सेना ने ही मांगे थे, जो इसे सेना की सूची में सबसे शक्तिशाली और सुरक्षित
टैंक बना देगा।
इसके पहले वर्ज़न अर्जुन 1 की तुलना में, मार्क-1ए में एक बेहतर गनर साईट यानि इसमे एक 120 mm मैन गन अटैच्ड
है, जो ऑटोमेटेड
टारगेट ट्रैकिंग कैपेबिलिटीस से लेस हैं। यह टैंक मोबाइल टारगेट्स का पता लगाने और
ट्रैक करने की कैपेबिलिटी भी देता है, इस टैंक में मूव करते हुए भी अटैक करने की सक्षमता है।
इसमें दिन-रात दोनों टाइम स्टेबिलाइड्ड साईट करने की खूबी
भी है। इसके अलावा, इसमें थर्मोबैरिक
और पैनीट्रेसन कम ब्लास्ट कैपेबिलिटी भी इंटीग्रेटेड है, साथ ही इसमे पारंपरिक फिन-स्टेबलाइज्ड आर्मर-पियर्सिंग दिस्कार्डिंग
साबोट और हाई एक्सप्लोसिव स्क्वैश हेड वेपन्स भी मौजूद हैं।
अर्जुन मार्क-1ए में 500 किमी की मैक्सिमम क्रूज़िंग रेंज में 58 किमी/घंटा की मैक्सिमम रोड स्पीड और क्रॉस कंट्री यानि एक देश से दूसरे देश में मूव करते हुए यह 40 किमी/घंटे की स्पीड से दौड़ सकता है। यह 30% की ढाल और 910 मिमी की वर्टीकल स्टेप को भी पार कर सकता है। यह 2,430 मिमी चौड़ी नेचुरल या मेनमेड खाइयों को पार कर सकता है। यह टैंक बिना तैयारी के 1.4 मीटर गहराई वाली पानी की बाधा को पार कर सकता है और एक किट की मदद से 2.15 मीटर की बाधा को पार कर सकता है।
हालांकि, अगर सेना अर्जुन मार्क-1ए से वास्तव में खुश है, तो यह क्यों कहा जा रहा है कि “यह अर्जुन सीरीज का एंड है और डीआरडीओ के ओफ्फिसिअल्स
का मानना है कि 118 टैंकों का यह आर्डर 68 टन के अर्जुन के लिए लास्ट आर्डर होगा ”?
दूसरा, अगर अर्जुन मार्क-1ए, जिसे रूसी टी -90S भीष्मा टैंकों के जवाब में
डेवेलप किया गया है, जो वर्तमान में भारतीय
सेना के आर्मड्ड रेजिमेंटों की रीढ़ की हड्डी हैं, अगर यह इतना शक्तिशाली है, तो ऐसा क्यों है कि सेना में
पहले से ही शामिल 1,191 भीष्म टैंकों को कॉम्प्लीमेंट
करने के लिए 464 T-90S टैंकों के निर्माण के लिए 20,000 करोड़ रुपये का ऑर्डर दिया गया?
यह दोनों सवाल परेशान करने वाले
हैं, अर्जुन टैंकों का इतिहास बहुत
सुनहरा नहीं रहा है, इसने डिजाइन में कई
बदलाव देखे हैं और यह ओवर बजट है साथ ही इसमें लंबे समय से देरी हो रही है। 1974
में पहली बार DRDO ने इसपर काम स्टार्ट किया था, वहीँ 2009 में 35 साल बाद, अर्जुन प्रोडक्शन के लिए "तैयार" था, इसका वजन 62 टन था। लेकिन इसमें कई कमियां भी थीं, जिन्हें सेना ने पॉइंट आउट किया था। इसके बावजूद सेना 124 टैंक्स को इस्तेमाल
करती रही, जिसमे 2013 में अर्जुन टैंक्स के लास्ट बैच को सेना में शामिल किया गया
था हालाकिं 2015 में 2 साल बाद ही 75% अर्जुन टैंक्स तकनिकी खामी की वजह से
इस्तेमाल के लायक नहीं रहे थे, स्पेयर पार्ट्स की कमी की वजह से 2013 के बाद से
अर्जुन टैंक्स इस्तेमाल में नहीं थे, 2017 में सेना ने स्पेयर पार्ट्स को इम्पोर्ट
करने का फैसला लिया ताकि तकनिकी फौल्ट्स को दूर करके इनको इस्तेमाल लायक बनाया जा
सके।
वहीँ 2010 के बाद से DRDO ने अर्जुन मार्क-2 प्रोग्राम की शुरुवात की ताकि अर्जुन मार्क-1 की कमियों को दूर करके इसमे नए फीचर्स जोडके इसको सेना की जरूरतों के हिसाब से ढाला जा सके, 2018 में 118 अर्जुन टैंक्स को खरीदने का फैसला लिया गया, DRDO ने तब तक अर्जुन मार्क 2 को अर्जुन मार्क-1ए नाम दे दिया था, लेकिन सेना इस नए वर्ज़न से भी खुश नहीं थी, उनका कहना था कि इसके मेन गन से मिसाइल फायर करने और बैटल मैनेजमेंट सिस्टम सेना की जरूरतों को मीट नहीं करते, वहीँ 62 टन की लाइट टैंक में भी सेना ने कई खामियों को पॉइंट आउट किया, इसी वजह से सेना को 68 टन के अर्जुन मार्क-1ए टैंक को इस्तेमाल करना पड़ा था, इसी वजह से 2020 से पहले सेना ने इसको क्लीयरेंस नहीं दिया था।
डिफेन्स एक्सपर्ट्स का मानना है की
जब तक सेना टैंक्स निर्माण के बल्क आर्डर नहीं देगी, तब तक परफॉरमेंस और क्वालिटी
में सुधार बेहद मुश्किल है।