नमस्ते क्या हम ब्लैक होल
से एनर्जी एक्सट्रेक्ट कर सकते हैं? क्या है
ब्लैकहोल स्टारशिप ? क्या भविष्य में इंसानी सभ्यता ब्लैकहोल के इर्द गिर्द पनप
रही होगी ?
इसी इंट्रेस्टिंग टॉपिक पर करेंगें इस ब्लॉग में डिटेल्ड डिस्कशन।
एक घूमता हुआ ब्लैक होल नेचर की एक ऐसी एक्सट्रीम फ़ोर्स है, जिसके आस-पास स्पेस और टाइम भी रुक जाता है। इसलिए यह सवाल करना नेचुरल है कि क्या ब्लैक होल को एक एनर्जी सोर्स के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है ? 1969 में, रोजर पेनरोज़ नाम के एक वैज्ञानिक ने ब्लैकहोल से एनर्जी एक्सट्रेक्ट करने के लिए एक मेथड प्रोपोस किया था, जिसे "पेनरोज़ प्रोसेस" के रूप में जाना जाता है।
इस तरीके का इस्तेमाल भविष्य में इंसानों या यहाँ
तक की एलियंस "ब्लैक होल बम" बनाकर एनर्जी एक्सट्रेक्ट करने के लिए कर पाएंगे।
ब्लैकहोल के इवेंट होराइजन के चारों ओर जिसके
आगे कुछ भी नहीं टिकता यहाँ तक कि लाइट भी इसको पार नहीं कर सकती, रोटेटिंग ब्लैक होल एक ऐसा
रीजन क्रिएट करता है जिसे "एर्गोस्फीयर" कहते हैं। एर्गोस्फीयर एक रोटेटिंग
ब्लैक होल के आउटर इवेंट होराइजन के बाहर मौजूद वह इलाका है जहाँ अगर एक ऑब्जेक्ट इसमें
में इस तरह से गिरे की वो दो टुकड़ों में बंट जाये, जिसमें से एक हिस्सा ब्लैक होल
में गिर जाये और दूसरा ब्लैकहोल से बच के निकल जाये – तो यह हिस्सा जो ब्लैकहोल
में गिरने से बच गया था, वो ब्लैकहोल से एनर्जी गेन करने लगेगा। इसलिए हम किसी
ऑब्जेक्ट या लाइट को एक रोटेटिंग ब्लैक होल की ओर भेजकर, उससे एनर्जी वापस पा सकते
हैं।
स्टीफन हॉकिंग ने भी प्रोपोस किया था कि फ़ास्ट स्पिनिंग ब्लैक होल एनर्जी एमिट करते हैं, वहीँ कोलंबिया यूनिवर्सिटी के फिजिसिस्ट लुका कोमिस्सो और चिली में यूनिवर्सिडाड एडोल्फो इबनाज़ के फेलिप असेंजो ने इवेंट होराइजन के पास मैगनेटिक फील्ड लाइन्स को ब्रेक करके और उसे फिरसे री-कनेक्ट करके ब्लैकहोल से ऊर्जा निकालने का एक नया तरीका खोजा है। ब्लैकहोल प्लाज्मा पार्टिकल्स के एक गर्म 'सूप' से घिरे होते हैं जो मैगनेटिक फील्ड बनातें हैं, जब मैगनेटिक फील्ड लाइन्स सही तरीके से डिस्कनेक्ट और री-कनेक्ट होती हैं, तो वे प्लाज्मा पार्टिकल्स को तेज़ी से एक्सीलरेट करके नेगेटिव एनर्जी में बदल देती हैं जिनसे बड़ी मात्रा में ब्लैकहोल से एनर्जी को निकाला जा सकता है।
एर्गोस्फीयर के अंदर, मैगनेटिक रीकनेक्शन इतना एक्सट्रीम होता है कि
प्लाज्मा पार्टिकल्स इतनी ज्यादा एक्सीलरेट हो जाती हैं की वो लाइट से भी ज्यादा
स्पीड गेन कर लेती हैं।
यह खोज वैज्ञानिकों को ब्लैक होल की स्पिन का
अनुमान लगाकर, ब्लैक होल से एनर्जी ड्राइव करके, एक एडवांस्ड सिविलाइज़ेशन की जरूरतों के लिए एनर्जी
सोर्स भी प्रोवाइड कर सकती है।
वैज्ञानिक कोमिसो और असेंजो ने जिस तरह की
एनर्जी एमिशन को प्रोपोस किया है वो प्रोसेस पहले से ही बड़ी संख्या में बडे ब्लैकहोल
में ऑपरेट हो रही है, पृथ्वी से हम जो पावरफुल
बर्स्ट डिटेक्ट करते रहें हैं, इसके पीछे भी यही वजह हो सकती है।
हालांकि यह सब अभी विज्ञान कथाओं जैसा लग सकता
है लेकिन, ब्लैकहोल से एनर्जी माइनिंग हमारी भविष्य की उर्जा की
जरूरतों का जवाब हो सकती है।
हजारों या लाखों साल बाद, इंसानी सभ्यता सितारों से ऊर्जा प्राप्त किए
बिना एक ब्लैक होल के आसपास जीवित रह सकती है। यह सोचना अभी बेहद ही काम्प्लेक्स
लगता होगा लेकिन। अगर हम फिजिक्स को देखें तो ऐसा कुछ भी नहीं है जो इसे हासिल
करने से हमें रोक सकता है।
हालांकि हम घूमते हुए ब्लैक होल से ऊर्जा
निकालने के कहीं भी करीब नहीं हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं
है कि यह एक बहुत ही एडवांस्ड एलियन या दूर भविष्य में हमारी अपनी इंसानी सभ्यता
द्वारा नहीं किया जा सकता। इस तरह की सभ्यता तेज़ घुमती हुई ब्लैक होल के चारों ओर
एक संरचना का निर्माण करके इसके आस पास रह सकती हैं और फिर इसमें एस्टेरोइडस्स या
यहां तक कि इलेक्ट्रोमैगनेटिक तरंगो को ब्लैकहोल में ड्राप करके और भी ज्यादा
रिफ्लेक्ट होती हुई एनर्जी को एक्सट्रेक्ट कर पाएंगी।
इससे भी बेहतर, वे एक ब्लैकहोल बोम्ब के
ज़रिये ब्लैकहोल को पूरी तरह से घेरने वाले एक रिफ्लेक्टिव मिरर शेल का निर्माण करके
उससे एनर्जी एक्सट्रेक्ट करेंगी, जब इस तरह से ब्लैक होल में लाइट को डायरेक्ट
किया जायेगा, तब ब्लैकहोल इस लाइट को एम्पलीफ़ाय करके वापिस रिफ्लेक्ट कर देगा और
फिर मिरर शेल इसको वापिस ब्लैकहोल में फैक देगी, और इस तरह से ब्लैकहोल एक लिमिटलेस
एनर्जी सोर्स की तरह काम करने लगेगा।
ब्लैकहोल खुद भी फोटोंस एमिट करते हैं जिन्हें हॉकिंग
रेडिएशन भी कहते हैं, इनको भी रिफ्लेक्ट करके ब्लैकहोल में बिना किसी लाइट या
एनर्जी को ड्राप किये बिना भी हम ब्लैकहोल की खुद की एनर्जी से एक कांस्टेंट
एनर्जी सोर्स क्रिएट कर पायेंगे।
हालांकि यह अभी भी विज्ञान कथा जैसा ही है, लेकिन आज से
खरबों साल बाद भविष्य में जब ब्रह्मांड में सब कुछ खत्म हो चूका होगा और
आकाशगंगाओं और सितारों की डेड बॉडीज यानि ब्लैकहोल बची रह गयी होगी, तब सिर्फ यही
तरीका होगा जिसके सहारे किसी भी सभ्यता के जीवित रहने की उम्मीद होगी।
आज से खरबों साल बाद हमारा सूरज भी अपनी सारी
उर्जा ख़त्म कर चूका होगा और शायद सूरज भी एक कॉम्पैक्ट डेंस ब्लैकहोल बन गया होगा,
तब इंसानी सभ्यता भी ऐसे ही किसी तरीके से जिन्दा रह रही होगी, और ब्लैकहोल से
रिफ्लेक्ट होती हुई एनर्जी से शायद पृथ्वी रोशन हो रही होगी।
यह भी पॉसिबल है कि इंसानी सभ्यता हमारी अपनी
आकाशगंगा में मौजूद किसी ब्लैकहोल या फिर दूसरी आकाशगंगा में मौजूद ब्लैकहोल के
इर्द गिर्द पनप रही होगी, किसी अन्य आकाशगंगा तक ट्रेवल करने के लिए भी हम
ब्लैकहोल स्टारशिप का ही इस्तेमाल कर रहे होंगें जो एक माइक्रो ब्लैकहोल से पावर्ड
इंजन से ऑपरेट होगा।
एक ब्लैकहोल पावर्ड स्टारशिप में तीन चीज़ों की
जरुरत होगी : एक माइक्रो ब्लैकहोल, जो हाल ही में इजराइल के वैज्ञानिकों ने लैब्स
में डेवलप कर लिया है, दूसरा रिफ्लेक्टर मिरर और तीसरा क्रू-मेंबर्स के लिए
क्रू-मोड्यूल जिसमें बैठ कर इन्सान विशाल अंतरिक्ष में लंबी लंबी यात्राएं कर रहे
होंगें।
रिफ्लेक्टर मिरर को माइक्रो ब्लैकहोल से फाइन ट्यून डिस्टेंस पर रखा जाएगा जहां हॉकिंग रेडिएशन
से निकलने वाली उर्जा और ब्लैक होल की एक्सट्रीम ग्रेविटेशनल फ़ोर्स बराबर होगी,
ऐसे में स्टारशिप रिफ्लेक्टर से रिफ्लेक्ट होती हुई एनर्जी और ब्लैकहोल की
ग्रेविटेशनल फ़ोर्स से प्रोपेल होकर लाइट से भी तेज़ स्पीड पर ट्रेवल करने लगेगा। इस
तरह, स्पेसशिप और माइक्रो
ब्लैकहोल एक दूसरे को छुए बगैर, अंतरिक्ष में तेज़ गति से एक साथ आगे बढ़ रहे होंगें।
यह ब्लैकहोल ही हैं जो
ब्रह्माण्ड में एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए शोर्टकट का काम करते हैं,
वैज्ञानिकों का मानना है की ब्लैकहोल एक टनल की तरह काम करते हैं, जिन्हें
वार्महोल कहते हैं, वार्महोल के ज़रिये अरबों खरबों प्रकाशवर्ष दूर दूसरी आकाशगंगायों
तक चुटकी में पहुँचा जा सकता है, लेकिन इसके लिए वार्महोल को क्रिएट करना पड़ेगा, जिसके
लिए एक्सट्रीम ग्रेविटेशनल फ़ोर्स की जरुरत होगी, इतनी ज्यादा ग्रेविटेशनल एनर्जी
सिर्फ ब्लैकहोल ही पैदा कर सकते हैं, वैज्ञानिकों ने लैब्स में मैगनेटिक वार्महोल
तो बना लिया है लेकिन क्या हम कभी ग्रेविटेशनल वार्महोल बना पायेंगे या नहीं वो
आने वाला भविष्य बताएगा, इतना जरुर है की इसका समाधान आर्टिफिशियल ब्लैकहोल से
होकर गुज़रता है, जो वैज्ञानिक बनानें में कामयाब हो चुके हैं।
अगर इंसानी सभ्यता को
बचाना है तो हमें ऐसा करना ही होगा क्यूकि सूरज भी एक तारा है जिसका इंधन कभी ना
कभी खत्म होगा ही, तब शायद इंसानी सभ्यता ऐसी ही किसी तकनीक के सहारे रोशन हो रही
होगी, यह अभी बेशक नामुमकिन नज़र आ रहा हो, लेकिन फिजिक्स में नामुमकिन कुछ भी नहीं है।