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Has Tejas lost in the race to JF-17?, Russian Spiderman Interceptor Dron...


क्या भारत का LCA तेजस ग्लोबल आर्म्स मार्केट में पाकिस्तान के JF-17 के आगे कहीं नहीं ठहरता ?

क्या पाकिस्तान के JF-17 थंडर में भारतीय LCA तेजस के मुकाबले में बिक्री की ज्यादा बेहतर संभावना है ? दक्षिण कोरिया द्वारा F / A-50 फाइटर जेट्स खरीदने में अपनी फेलियर के बाद, अर्जेंटीना वायु सेना पाकिस्तानी JF-17 थंडर को खरीदने पर विचार कर रही है। जबकि यह फाइटर जेट पहले ही नाइजीरिया और म्यांमार से एक्सपोर्ट आर्डर सिक्योर कर चुका है, भारत के LCA तेजस को इस मोर्चे पर कामयाबी पाने के लिए अभी मीलों का सफ़र करना है।

नई रिपोर्टें सामने आ रही हैं कि अर्जेंटीना अब अन्य सस्ती विकल्पों में अपनी दिलचस्पी दिखा रहा है, जैसे कि चीन-पाकिस्तानी JF-17 थंडर। अर्जेंटीना के वायु सेना चीफ ब्रिगेडियर जेवियर इसाक ने पुकारा डिफेंस को दिए एक इंटरव्यू में इन अटकलों को कन्फर्म किया है। उन्होंने कहा कि अर्जेंटीना JF-17 को रिकनसिडर कर सकता है, खासतौर से नए ब्लॉक III वर्ज़न के लिए। यह इस फाइटर जेट को खरीदने की तरफ एक महत्वपूर्ण डेवेलपमेंट है, जो पाकिस्तान एयरोनॉटिकल कॉम्प्लेक्स और चीन के चेंगदू एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन ने जॉइंट वेंचर के अंदर मिलके बनाया है।

यह ग्लोबल मार्किट में विकासशील देशों के लिए एक प्रभावी, कम लागत वाले    सिंगल-इंजन फाइटर जेट के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है - टी-50 और IAI Kfir केफिर की तरह। इसका ब्लॉक- III वर्शन डेवलपमेंट के लास्ट फेज में है और इसमें AESA रडार भी मौजूद है। भारत द्वारा बनाए गए HAL तेजस MK1-A की तुलना में, पाकिस्तानी फाइटर जेट कई ग्लोबल कस्टमर पाने में सफल रहा है। हालाकि नए डेवलप्ड लो-कास्ट और एडवांस्ड मल्टीरोल फाइटर एयरक्राफ्ट, तेजस MK1-A वेरिएंट ने, , मलेशिया और यूएई जैसे देशों का ध्यान आकर्षित किया है। तेजस पर JF-17 फाइटर जेट को चुनने वाले देशों की मुख्य वजह HAL द्वारा कम प्रोडक्शन रेट रही है, जो कि उनके पाकिस्तानी-चीनी राइवल फाइटर जेट में  लगभग आधा है।

10 मुख्य कारण जिनकी वजह से तेजस अपने कॉम्बैट परफॉरमेंस में भारतीय वायु सेना को भी इम्प्रेस करने में असफल रहा है वो हैं –

1)     पहली वजह है - तेजस के पास वेपन्स का बहुत छोटा सेट है, जिसमें ज्यादातर भारतीय और कुछ विदेशी हथियार शामिल हैं। इसलिए, एक तरफ, आप देशों को उन भारतीय हथियारों को खरीदने के लिए मजबूर करते हैं जो उनके काम के नहीं हैं – और अगर आप उनको वेस्टर्न हथियार देते हैं, तो वे पूछते हैं कि जब वेस्टर्न ही लेना है फिर कि भारतीय हथियार खरीदने का क्या फायदा है जब घूम फिरके वेस्टर्न ही मिल रहा है ?

2)      दूसरी वजह है, पाकिस्तान के साथ - JF17 फाइटर जेट चीनी सप्लाई चैन में स्लॉट करता है – जो बहुत पहले से बडे, छोटे और अलग अलग तरह के टेस्टेड प्रूवन हथियार बनाते और बेचते आये हैं, उनका ट्रैक रिकॉर्ड पुराना और बेहतर है। JF-17 खरीदने वाले देश, जो पहले से भी चीनी हथियारों को यूज़ करते आये हैं, वो चीनी हथियारों को खरीदने के लिए ज्यादा कम्फ़र्टेबल हैं इसके अलावा वास्तव में, खराब ह्यूमन राइट्स रिकॉर्ड वाले देश चीन को को ही पसंद करेंगे क्यूकि उनपर sanctions प्रतिबंध नहीं लगेगा।

3)     तीसरी वजह है, चीन के पास सिक्यूरिटी काउंसिल का वीटो पॉवर है इसलिएर चीन से हथियार खरीदने वाले किसी भी देश के पास सिक्यूरिटी काउंसिल के किसी भी फैसले के खिलाफ यह महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। भारत के पास ऐसा कोई वीटो पॉवर नहीं है।

4)     अब चौथी वजह, JF-17 सिर्फ एक बेहतर-स्लोटेड प्लेन है - अगर आप मिग 21 से लेकर मिग 27 तक और चीनी J6 J7 जैसे के फाइटर जेट्स या पुराने अमेरिकी फाइटर जेट्स जैसे F4 F5 और F104 को रिप्लेस करना चाहते हैं या उनको अपग्रेड करना चाहते हैं, तो उनकी तुलना में JF-17 को चीन कम खर्चे में और ज्यादा बेहतर कापबिलिटी प्रदान करता है।

5)     पांचवी वजह तेजस एक बहुत ही कन्फ्यूज्ड एयरक्राफ्ट है - यह किसी भी मार्किट सेगमेंट में बेचे जाने के लिए फिट नहीं बैठता।

6)     छटी वजह, वहीँ JF-17 की बात करें तो ये एक मामूली एयरक्राफ्ट है लेकिन जो भी टेक्नोलॉजी इसमें है वह ठोस और प्रूव्ड है।

7)     सातवी वजह, तेजस एक नाईटमेयर है – ये नया है, इसके बारे में कुछ भी साबित नहीं हुआ है, इसमें बहुत अधिक मिक्सिंग मैचिंग और फेरबदल किया गया है, इसी वजह से खरीदारों के लिए यह 0 पर्चैजर कॉन्फिडेंस देता है।

8)     आठवी वजह, आखिर में, फिर रि-एक्सपोर्ट का सवाल। JF-17 ज्यादातर चीनी उपकरणों का इस्तेमाल करता है लेकिन कुछ इटालियन एविओनिक्स और रडार का भी इस्तेमाल करता है और रूसी इंजन - जिनमें से सभी को किसी तीसरे देश को रि-एक्सपोर्ट करने के लिए मंजूरी मिली हुई है।

9)     नौवीं वजह, तेजस अमेरिकी इंजनों, इजरायल के राडार और उन देशों के एविओनिक्स के मिश्माश का इस्तेमाल करता है जो किसी तीसरे देश को कभी भी रि-एक्सपोर्ट की मंजूरी नहीं देते।

10) दसवी वजह है, तेजस को इस बात का भी नुकसान हो रहा है की वर्तमान में इस एयरक्राफ्ट को कोई ऑपरेट नहीं कर रहा, यहां तक ​​कि भारतीय वायु सेना भी नहीं, जिसके पास केवल कुछ ही एयरक्राफ्ट सर्विस में हैं। यह किसी भी संभावित खरीदार के कॉन्फिडेंस को कम करता है।

वहीँ दूसरी तरफ, JF-17 थंडर प्रोग्राम को बड़ी सफलता मिली है। 100 से ज्यादा यूनिट्स पाकिस्तानी वायु सेना के साथ सर्विस में हैं और कुछ नए फाइटर जेट्स के आर्डर भी किये गये हैं। इसके लॉजिस्टिक्स, स्पेयर पार्ट्स, सर्विसिंग, ट्रेनिंग, अपग्रेड और वेपन इंटीग्रेशन का काम एक स्मूथ प्रोसेस के ज़रिये चल रहा हैं। यह बताता है कि म्यांमार और नाइजीरिया ने मार्किट में मौजूद अन्य विकल्पों पर JF-17 थंडर को क्यों चुना।

JF-17 थंडर फाइटर जेट की अफोर्डेबल प्राइस, स्मूथ अवेलेबिलिटी, बेहतर आफ्टर सेल सर्विस और फाइनेंसिंग जैसे सुविधा दूसरे देशो जैसे अजरबाईजान, इराक और अर्जेंटीना को JF-17 थंडर को खरीदने के लिए मोटीवेट करते हैं।

लेकिन क्या पाकिस्तान के लिए यह खुश होने की बात है ? और भारत के लिए दुखी होने की ?

जवाब नहीं, असल में पाकिस्तान के पास जो भी है वो उसका नहीं है, चीन का है, उसके पास इस फाइटर जेट में इस्तेमाल एक भी टेक्नोलॉजी उसकी नहीं है, जिस भी दिन चीन चाहेगा उसको लात मार देगा जैसे फ्रांस ने मारा, मिराज फाइटर जेट की मैनटेनैन्स को लेकर, लेकिन भारत राडार इंजन फ़िलहाल बाहर से ले जरुर रहा है, लेकिन साथ साथ खुद के इंजन और राडार भी बना रहा है और दूसरी अन्य टेक्नोलॉजी भी भारत खुद बनाने की तरफ बढ़ चला है, इसलिए भारत के पास जो भी है, वो अपना है, पाकिस्तान की तरह भीख में नहीं मिला, जो कोई भी आकर छिन ले।

नहीं चली चीन की कोई चाल! चाबहार पोर्ट के इस्तेमाल के लिए भारत के साथ आया उज्बेकिस्तान

भारत और उज्बेकिस्तान ने विभिन्‍न क्षेत्रों में नौ एग्रीमेंट्स पर साइन किये हैं। भारत, उज्बेकिस्तान और ईरान आज 14 दिसम्बर के दिन रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण चाबहार पोर्ट के जॉइंट यूज़ पर पहली ट्रायलेटरल मीटिंग कंडक्ट करने वाले हैं। ये नए डेवलपमेंट्स उस बैकड्राप में आ रहे हैं जब अमेरिकी प्रेसिडेंट जो-बिडेन ने ईरान के साथ फिरसे अपने 2015 के न्यूकलियर डील को रिस्टोर करने का फैसला लिया है। एनर्जी रिच ईरान के दक्षिणी तट पर बलूचिस्तान प्रोविंस में स्थित इस पोर्ट के ज़रिये पाकिस्तान को दरकिनार कर भारत बड़ी आसानी से अफ़ग़ानिस्तान और सेंट्रल एशिया तक जा सकता है। इससे सेंट्रल एशिया के कई देशों को भारत के साथ जोडा जा सकता है यानि ये पोर्ट एक मेजर ट्रांजिट पॉइंट की तरह काम करेगा

उज्बेक के प्रेसिडेंट श्वकत मिर्ज़ियो-एव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक शिखर सम्मेलन के दौरान एक बैठक का प्रस्ताव रखा था।

राजनाथ सिंह इस मुद्दे पर पहले ही उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान के कई मंत्रियों से मुलाकात कर चुके हैं, भारत वर्तमान में चाबहार पोर्ट के टर्मिनलों में से एक का संचालन कर रहा है जिसे उसने डेवेलोप किया है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 2018 में ईरान के साथ न्यूकलियर डील को एकतरफा रूप से वापस ले लिया था और मैक्सिमम प्रेशर कैंपेन के हिस्से के रूप में ईरान पर प्रतिबंध लगाए थे। दूसरी ओर बिडेन ने कहा कि वह को ईरान को डिप्लोमेटिक तरीके से हैंडल करेंगे जो ईरान से निपटने के लिए ज्यादा बेहतर फैसला होगा जो इस क्षेत्र में स्थिरता के लिए सबसे अच्छा रहेगा।

भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है चाबहार पोर्ट ?

भारत चाबहार पोर्ट को ट्रांजिट पोर्ट के रूप में यूज़ के लिए डेवेलप कर रहा है जिसमे अब उज्बेकिस्तान के साथ आने से इस रीजन के ट्रेडर्स और बिज़नेस कम्युनिटी के लिए आर्थिक अवसर खुलेंगे। उज्बेकिस्तान के अलावा, दूसरे सेंट्रल एशियन देशों ने भी इस पोर्ट के इस्तेमाल में दिलचस्पी दिखाई है।

भारत और उज्बेकिस्तान के बीच ट्रेड रूट अफ़गानिस्तान में पैर जमाने में भी भारत के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। उज्बेकिस्तान ने चाबहार पोर्ट से अफगानिस्तान के लिए एक रेलवे लिंक बनाया है, रेलवे लिंक बनाने का मकसद सिर्फ अफगानिस्तान को ईरान से जोड़ना नहीं था, इस रेलवे लिंक के ज़रिये वो उज्बेकिस्तान को हिन्द महासागर से जोड़कर, दुनिया और भारत के साथ अपनी कनेक्टिविटी मज़बूत करना चाहता है।

दिलचस्प बात यह है कि चाबहार पोर्ट पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट के करीब है, जिसे चीन द्वारा उसके चीन-पाकिस्तान इकनोमिक कॉरिडोर के हिस्से के रूप में डेवेलप किया जा रहा है, जो इसे बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के ज़रिये से हिंद महासागर से जोड़ता है।

ईरान भारत के लिए एक गेटवे की तरह है जो चाबहार पोर्ट के ज़रिये न केवल अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया को भारत से जोड़ता है बल्कि ये इंटरनेशनल नार्थ-साउथ ट्रांसपोर्टेशन कॉरिडोर के ज़रिये यूरोप और रूस को भी भारत से जोड़ देगा।

वहीँ दूसरी तरफ बीजिंग के साथ ईरान के संबंधों में हाल के वर्षों में काफी सुधार हुआ है, दोनों देश इकनोमिक और सिक्यूरिटी पार्टनरशिप पर मेगा-डील साइन करने की प्लानिंग भी कर रहे हैं, जिसकी कीमत 400 बिलियन $ है, जिसने भारत के साथ-साथ दुनिया के बाकी देशो का भी ध्यान आकर्षित किया है।

चीन 25 सालों के लिए यह मेगा डील ईरान के साथ करना चाहता है, इस डील से चीनी प्रेसिडेंट शी जिनपिंग को टेलिकॉम, टूरिज्म, एग्रीकल्चर सेक्टर, और इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में सहयोग के बदले ईरान के तेल और गैस जैसे रिसोर्सेज को टैप करने की छुट मिल जाएगी, साथ ही चीन अपने पॉवर का इस्तेमाल करके ईरान के मामलों में भी दखल दे पायेगा, चीन इसका इस्तेमाल भारत और तेहरान के बीच दूरी बनाने के लिए भी कर सकता है।

हालाँकि, चीन की अरबों डॉलर की डील ईरान की इकॉनमी के लिए एक राहत की बात है, जो कि अमेरिकी प्रेसिडेंट ट्रम्प के इस इस्लामिक देश के खिलाफ "मैक्सिमम प्रेशर" कैंपेन से बुरी तरह से प्रभावित हुई है ।

रूस के नए इंटरसेप्टर ड्रोन स्पाइडरमैन वेब के ज़रिये कर सकते हैं दुश्मन के ड्रोन का काम तमाम

जैसे जैसे ड्रोन टेक्नोलॉजी ज्यादा से ज्यादा एडवांस्ड होती चली जा रही है,  दुनिया भर की सेनाएं ऐसे टेक्नोलॉजी की तलाश में हैं जो उन्हें दुश्मन के यूएवी को इंटर्रसेप्ट करने या उन्हें टारगेट करने में सक्षम बना सकती हो। रूस उन देशो में शामिल है, जिन्हें लगता है कि उन्हें इसमें कुछ सफलता मिली है।

जहाँ एक ओर ड्रोन स्वार्मिंग टेक्नोलॉजी और एंटी-ड्रोन वेपन्स की डेवेलपमेंट में तेज़ी आ रही है, वहीँ रूस यूएवी को पकड़ने के लिए एक नॉन-डिस्ट्रकटिव तरीके के साथ सामने आया है यानि जिसमे ड्रोन को मार गिरने की जरुरत नहीं पड़ती।

इंटरसेप्टर ड्रोन Ruselectronics Group की वेगा कंपनी द्वारा डेवेलप किया गया है, जो स्टेट-ओन्ड रोस्टेक कॉर्पोरेशन का ही एक हिस्सा है। यह एक स्पेशल नेट को टारगेट पर फैंक कर उसे कैप्चर करता हैं, यानि उसे नेट में फंसा लेता है, यह कंपनी इस टेक्नोलॉजी को पेटेंट करने के लिए भी देख रही है।

इस इंटरसेप्टर ड्रोन में कम से कम दो इंजन लगे हुए होते हैं, जिसमे दोनों इंजन की एंगल ऑफ़ रोटेशन अलग भी हो सकती है। इसकी खास बात है इसकी स्पेशल “एरो-डायनामिक स्ट्रक्चर” जिसमें एक पकड़ने वाले जाल को फ्रेम के खोखली जगह में इंटीग्रेट किया गया है। जिसको दुश्मन के ड्रोन पर फैंक कर ड्रोन को बिना नुकसान पहुचाये उसको पकड़ा जा सकता है। साथ ही नेट की साइज़, उसकी लम्बाई, पकड़ने की ताक़त इसमें मौजूद आटोमेटिक कोएल विंडर द्वारा कण्ट्रोल किया जा सकता है।

इस तरह के ड्रोन से जमीन पर गिरने वाले मलबे और नुकसान होने की संभावना कम हो जाएगी, जो इन्हें शहरी और घनी आबादी वाले इलाकों में ऑपरेशन करने के लिए सूटेबल बनाते हैं।

हालाकिं रूस के नेट वाले इंटरसेप्टर ड्रोन काफी अलग हैं लेकिन ऐसा नहीं है की इस तरह की टेक्नोलॉजी पर पहले किसी ने काम नहीं किया है, चार साल पहले, मिशिगन टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के रिसर्चस्स ने ड्रोन को पकड़ने के लिए इसी तरह की "ड्रोन-कैचर" टेक्नोलॉजी को डेवेलप किया था।

टोक्यो पुलिस भी इसी तरह के ड्रोन पकड़ने वाले नेट का इस्तेमाल कर रही है, हालांकि एक नेट-लॉन्चिंग सिस्टम के बजाय, वे ड्रोनों को पकड़ने के लिए एक मानव रहित एयरक्राफ्ट का इस्तेमाल करते हैं।



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