इजरायल के वैज्ञानिकों ने लैब में किया ब्लैकहोल क्रिएट जिसने स्टीफन हॉकिंग की थ्योरीस को किया प्रूफ
दशकों से, ब्लैकहोल की आश्चर्यजनक
और रहस्यमई प्रॉपर्टीज ने वैज्ञानिकों को लगातार
अपनी और खिंचा है । ब्लैकहोल चाहे छोटा हो, मीडियम या सुपरमैसिव, ब्लैक होल को
स्टडी करना, इसको देख पाना, इसकी रहस्य को जान पाना वैज्ञानिकों के लिए आसान नहीं
रहा है क्योंकि पृथ्वी से उनकी अत्यंत दूरी और उनकी अजीबोगरीब प्रॉपर्टीज को स्टडी
करना या उनके पास जाना इंसानों या इंसानों द्वारा बनायीं गयी किसी भी टेक्नोलॉजी
के लिए प्रेजेंट में लगभग नामुमकिन है । इसलिए वैज्ञानिकों ने ब्लैकहोल की
प्रॉपर्टीज को स्टडी करने के लिए लैब्स के अंदर आर्टिफीसियल ब्लैक होल बनाना शुरू
कर दिया है। और ऐसा ही एक एक्सपेरिमेंट, टेक्नियन-इज़राइल
इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने किया है, जिसने यह ने
साबित कर दिया है कि स्टीफन हॉकिंग ब्लैक होल के बारे में बिलकुल सही थे।
स्टीफन हॉकिंग ने क्या
कहा था?
एस्ट्रो-फिजिसिस्ट, पार्टिकल फिजिसिस्ट और बहुत
से स्पेस रिसर्चर लंबे समय से यह मान रहे थे कि ब्लैक होल एक तारे की ही डेड बॉडीस
है जो फ्यूल खत्म होने के बाद अन्दर की तरफ ढह गयी हैं, सिकुड़ गयी हैं। यह माना
जाता रहा है, और वैज्ञानिकों ने प्रूफ भी किया है कि एक तारे के अंत से ही अंतरिक्ष
में एक ऐसा एरिया बनता है जहाँ ग्रेविटी इतनी ज्यादा होती है कि लाइट भी उसमे से
नहीं गुज़र सकती। जब लाइट के पार्टिकल्स, ब्लैकहोल के बेहद करीब, यानि पॉइंट ऑफ़
नो-रिटर्न यानि इवेंट होराइजन तक पहुंचतें हैं तो वो ब्लैकहोल के अंधेरे में गायब
हो जाते हैं। यही वजह है कि ब्लैकहोल को स्टार इटर्स भी माना जाता है।
1974 में, नोबेल प्राइज
विनर फिजिसिस्ट स्टीफन हॉकिंग ने कहा था कि ब्लैक होल वास्तव में उतने डार्क नहीं
हैं जितना कि हम सोचतें हैं, बल्कि यह बिना किसी सोर्स
के लगातार एक सॉफ्ट लाइट एमिट करता रहता है। हॉकिंग ने कहा था कि इवेंट होराइजन पर, ब्लैक होल खुद फोटोंस की एक कांस्टेंट स्ट्रीम
एमिट करता रहता है, जिसे वर्चुअल पार्टिकल्स
कहते हैं, जो एक प्रकार की सॉफ्ट और स्टेडी स्ट्रीम का
निर्माण करता है, बहुत कुछ स्टार्स की तरह।
ये वर्चुअल पार्टिकल्स ट्रांसिएंट क्वांटम फ्लक्चुएशनस्स के परिणामस्वरुप बनतें हैं, जिसका मतलब है कि वे एक्सिस्ट करते हैं, मौजूद
हैं, लेकिन ब्लैकहोल के इवेंट होराइजन से लगातार अन्दर बाहर निकलते रहते हैं,
पॉप-इन पॉप-आउट होते रहते हैं।
हॉकिंग रेडिएशन यानि ब्लैकहोल से निकलती हुई
रेडिएशन को स्टडी करने के लिए, टेक्नियन-इज़राइल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के
वैज्ञानिकों ने लैब में एनालॉग या एक ब्लैकहोल के एक स्केल-डाउन वर्ज़न को डिज़ाइन किया। ब्लैकहोल
एनालॉग का एक एग्जामपल आपके अपने घर में भी पाया जा सकता है, एक बाथटब वोरटैक्स
यानि बाथटब भंवर जिसे आप सबने देखा ही होगा, लेकिन इजरायल के वैज्ञानिकों ने
ब्लैकहोल को स्टडी करने के लिये इसका यूज़ नहीं किया है।
इसके बजाय, टीम ने लगभग एक्सट्रीम
जीरो तक 8,000 रुबिडियम एटम्स को ठंडा किया और उन्हें लेजर बीम के साथ
एक जगह में ट्रैप किया।, जिन्हें नियरली स्टेटिक गैस BEC( बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट ) कहा जाता है, जिसमें एटम्स
इतने डेंसली पैक्ड हो जाते हैं कि वे एक सुपर एटम्स की तरह बिहेव करने लगते हैं।
एक दूसरे लेजर बीम ने पोटेंशियल एनर्जी की एक स्ट्रीम
का निर्माण किया जिससे BEC गैस झरने से गिरती हुई पानी की तरह बहने लगी।
इस रीजन के बीच की बाउंड्री जहां गैस का आधा भाग साउंड की स्पीड से भी तेज स्पीड
से फ्लो कर रहा था जबकि दूसरा आधा भाग धीरे-धीरे फ्लो हो रहा था, वह सोनिक ब्लैक
होल का इवेंट होराइजन था।
इवेंट होराइजन से परे, गैस फ्लो के फास्टर
हाफ में फोटोन्स, तेज़ गति से फ्लो होती हुई
गैस में ट्रैप हो रहे थे। ठीक उसी तरह जैसे ब्लैक होल इवेंट होराइजन को क्रॉस करती
हुई लाइट पार्टिकल्स को ट्रैप कर लेते हैं, वैसे ही फोटोन्स सोनिक ब्लैक
होल के इवेंट होराइजन के दूसरी ओर नहीं लौट सकता है।
हॉकिंग रेडिएशन की पुष्टि करने के लिए
स्टाइनहाऊर के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम को लगातार 124 दिनों तक इस एक्सपेरिमेंट
के 97,000 इटरेसंस को दोहराना पड़ा। और लकीली उनके पेशेंस ने पेऑफ
किया।
हमारी आकाशगंगा के दिल में मौजूद सुपर मासिव ब्लैक होल में हो सकता है 'जेट स्ट्रीम' मौजूद ना हो जैसा की
अब तक वैज्ञानिक सोचते आये थे, आईये जानतें हैं इसका क्या मतलब है
यह माना जाता रहा है
कि लगभग हर आकाशगंगा के सेंटर में एक सुपरमैसिव ब्लैक होल होता है और हमारी हमारी
आकाशगंगा भी इससे अलग नहीं है। इस बारे में बहुत कम लोगों को पता है कि सभी
आकाशगंगाओं के दिल में यह सुपर-डेंस एलिमेंट क्यों होता है, लेकिन इस स्पेशल ब्लैक होल के बारे में नई जानकारी है सामनें आई है जो हमारी
आकाशगंगा में मौजूद है।
एक नए रिसर्च से पता
चलता है कि मिल्की वे आकाशगंगा के केंद्र में सुपरमैसिव ब्लैक होल उतनी तेज़ी से
नहीं घूम रहा, जितना हमने सोचा था, जिसका मतलब यह है कि इसमें जेट स्ट्रीम होने की संभावना नहीं है। एक जेट तब
बनता है जब आयोनाइज्ड मेटर (चार्ज) एक ब्लैक होल के घूमने पर रोटेट होती हुई डिस्क
से निकलता है, यह लगभग लाइट की स्पीड तक पहुँच सकता है।
सुपरमैसिव ब्लैक होल (SMBH) होमोगीनियस हैं। उन्हें
स्पिन और मास के आधार पर करेक्टराइज किया जाता है। ये माना जाता है कि सुपरमैसिव
ब्लैकहोल सब कुछ प्रभावित कर सकते हैं जैसे आकाशगंगाओं के फार्मेशन से लेकर उनकी इवोल्यूशन
विकास तक।
ब्लैकहोल बड़ी मात्रा में एनर्जी रिलीज़ करते हैं जो आकाशगंगाओं से गैस निकालते हैं और इसलिए यह उनके स्टार फार्मेशन के इतिहास को भी आकार देते हैं।
हालाकिं हम जानते हैं
कि सुपरमैसिव ब्लैक होल की अपनी होस्ट आकाशगंगा पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव है, लेकिन उनकी स्पिन के
बारे में बहुत कम जानकारी है। और यह प्रभाव इफ़ेक्ट स्टडी करने के लिए बहुत
सूक्ष्म है बारीक़ है।
यह रिसर्च सेंटर फॉर
एस्ट्रोफिजिक्स, सेंटर फॉर इंटर-डिसिप्लिनरी एक्सप्लोरेशन एंड रिसर्च इन एस्ट्रोफिजिक्स (CIERA) द्वारा नॉर्थवेस्टर्न
यूनिवर्सिटी और हार्वर्ड एंड स्मिथसोनियन में किया गया था।
CIERA के डॉ एवी लोएब अपने साथी डॉ गियाकोमो फ्रैगिओन के साथ, हमारी अपनी आकाशगंगा के जन्म के बारे में अधिक जानने के लिए सुपरमैसिव ब्लैक
होल को को स्टडी कर रहे हैं।
इसके लिए, उन्होंने इसके चारों ओर स्टार्स की ओर्बिट्स, और ब्लैकहोल के इर्द गिर्द मौजूद
स्टार्स की डिस्ट्रीब्यूशन का अध्ययन किया क्योंकि ब्लैक होल को पूरी तरह से समझ
पाना और पूरी तरह से एक्स्प्लोर कर पाना थोडा मुश्किल है।
इस रिसर्च में यह पाया
गया कि हमारी आकाशगंगा के सेंटर में मौजूद ब्लैकहोल की रोटेशन ऑफ़ स्पिन स्लो है, साथ ही सुपरमैसिव ब्लैकहोल्स के इर्द
गिर्द मौजूद स्टार्स, आर्गेनाइज्ड लेन्स में डिस्ट्रीब्यूटेड लगते हैं। वैज्ञानिकों
का कहना है कि अगर आकाशगंगा तेजी से घूम रही होती, तो आसपास के सितारे अब
तक थोड़ा मिस-अलाइन हो गये होते।
वैज्ञानिक मानते हैं कि आकाशगंगा अपने मक्सिमल वैल्यू
की सिर्फ 10% की स्पीड से घूम रही है ( अगर इसको सुपरमैसिव ब्लैकहोल्स की स्पीड से कमपेअर किया जाये जो लाइट की
स्पीड से घुमती है)
और इस निष्कर्ष से यह भी पता चलता है कि
फास्ट-स्पिनिंग सुपरमैसिव ब्लैकहोल्स से जुड़े जेट, हमारी आकाशगंगा जैसी
धीमी-स्पिनिंग सुपरमैसिव ब्लैकहोल्स में मौजूद नहीं
हो सकते। हालांकि, इस बात को कन्फर्म करने के लिए, टीम को इवेंट होराइजन
टेलीस्कोप से इक्कठा किये गये डेटा का इंतज़ार है।
ब्लैक होल्स में मौजूद हो
सकतें हैं 'हेयर' जो अल्बर्ट
आइंस्टीन के सिधान्तों को करते हैं वायलेट
अल्बर्ट आइंस्टीन, जिन्हें फिजिक्स
की दुनिया में भगवान की तरह देखा जाता है, वो ब्रह्मांड को समझने के
बेहद करीब रहें हैं। लेकिन, इस नयी खोज से अब ऐसा लग रहा है कि वो भी शायद ब्लैकहोल
पर अपने सिद्धांतों के बारे में गलत हो सकतें हैं। आइंस्टीन ने नोट किया था कि
ब्लैकहोल की तीन प्रॉपर्टीज होती हैं - मास, स्पिन और चार्ज - जो सभी
ब्लैक होल को एक समान बना देती है। लेकिन एक नए रिसर्च के अनुसार, एक चौथी
प्रॉपर्टी फीचर भी हो सकती है, वह है हेयर।
2012 में, स्टेफानोस अरेटिस, एक मेथेमेटीशियन ने ब्लैकहोल के इवेंट होराइजन में इन्सटेबिलिटी की प्रेसेंस को सजेस्ट किया था - जिनसे हेयर बन रहे थे, लेकिन उनका मेथेमेटीकल वर्क उनकी वास्तविकता को प्रूफ नहीं कर पाया था।
हालांकि, एक नए रिसर्च के अनुसार, इस हेयर की मौजूदगी
का पता लगाने का एक तरीका हो सकता है। पेपर के सह-लेखक गौरव खन्ना का कहना है कि
उन्होंने इसे क्वांटिफाई करने का एक तरीका खोज लिया है।
नियर एक्सट्रीमल ब्लैकहोल के इवेंट होराइजन पर
या उसके आसपास ग्रेविटेशनल इन्सटेबिलिटी, उस पर पड़ने वाले मेटर पदार्थ
से बनाई जा सकती है। आखिरकार, ब्लैक होल अपने आस-पास के सभी पदार्थों को निगलने
करने के लिए मशहूर हैं।
ये हेयर, अगर मौजूद है, तो ब्लैक होल के
अतीत के बारे में जानकारी बरकरार रखेगा। नो हेयर थ्योरम वायलेशन जनरल रिलेटिविटी
और क्वांटम मैकेनिक्स के बीच विरोधाभासों को हल कर सकता है।
लेकिन, इस रास्ते में बहुत बाधाएं
हैं। पहले तो नियर एक्सट्रीमल ब्लैकहोल हैं या नहीं वही अभी नहीं पता है, अगर वे
हैं, तो भी हम नहीं जानते हैं कि क्या हमारे ग्रेविटेशनल वेव
डिटेक्टर्स "हेयर से इन इन्सटेबिलिटीस" का पता लगाने के लिए इतने
सेंसिटिव हैं भी या नहीं। आखिरी हर्डल खुद हेयर ही है, अगर ये मौजूद हैं, तो भी यह बहुत ही
कम समय के लिए होगा, यानि फ्रैक्शन ऑफ़ सेकंड से भी कम समय के लिए।
क्या नेचर हमे वो वक़्त देगी जब हमे इसे देख
पाएं, वो तो आने वाला वक़्त ही बताएगा, दूसरा तरीका हो सकता है लैब्स में ब्लैक होल
को क्रिएट करके इनको स्टडी करना, जो इजराइल के वैज्ञानिकों ने हाल ही में डेवलप
किया है। जो हमने इस विडियो की 1st टॉपिक में डिस्कस किया था।