भारतीय डिफेन्स स्पेस एजेंसी एक ऐसे टेक्नोलॉजी की हंट में हैं जिसमे होगी दुश्मन के एसेट्स को ट्रैक करने की कैपेबिलिटी
रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत की डिफेंस स्पेस एजेंसी (DSA) स्पेस और इंटरनल खतरों से निपटने के लिए नयी एडवांस्ड तकनीक की तलाश में हैं। डिफेन्स
मिनिस्ट्री से मंजूरी के बाद 2019 के मिड में DSA को सेटअप किया गया था।
DSA ने स्पेस रिलेटेड सिचुएशनल अवेयरनेस सोल्यूशन देने वाली टेक्नोलॉजीज के लिये कंपनियों से प्रपोजल मांगें हैं, जो किसी भी हमलों के बारे में वार्निंग देने के साथ दुश्मन के एसेट्स का पता लगा सकते हों, पहचान कर सकते हों और ट्रैक कर सकते हों।
एजेंसी एक ऐसी सिस्टम की खोज में
हैं जिसे भविष्य में आक्रामक भूमिका निभाने के लिए बढ़ाया जा सके। यह सिस्टम
विभिन्न सोर्सेज से इकठ्ठा किये गये स्पेस सर्विलांस डेटा का फ्यूज़न होगा जो बेहतर
ढंग से खतरों को इवेलुवेट कर पायेगा और स्पेस, ज़मीन, समुद्र और एरियल डोमेन
में भारतीय ऑपरेशनस्स की इफेक्टिवनेस को बढ़ाने की कैपेबिलिटी भी रखेगा।
DSA एक ऐसी तकनीक की तलाश में है, जो वॉच स्क्रीन पर स्पेस एक्टिविटीज से रिलेटेड स्क्रीनिंग और एनालिसिस जैसे
टास्कस को परफॉर्म करेगा, इसे नेबरहुड वाच प्रोग्राम कहते हैं, जो स्पेस एक्टिविटीज की
डिटेल्ड पर्सपेक्टिव प्रोवाइड करेगा।
यह टेक्नोलॉजी एंटी-सैटेलाइट वेपन्स, अंतरिक्ष मलबे, डायरेक्टेड एनर्जी
वेपन्स और रेडियो फ्रीक्वेंसी इंटरफेयरेंस जैसे थ्रेट्स को प्रीडिक्ट करने में
सक्षम होगा। मिलिट्री को जमीन, हवा और पानी में मोर्डनाइज करने के अलावा, स्पेस में भी डिफेन्स
के लिए तैयार रहना बेहद महत्वपूर्ण हो गया है। अमेरिका, चीन, रूस जैसे देश स्पेस
वारफेयर के लिए सेपरेट मिलिट्री विंग सेटअप भी कर चुके हैं, भारत को भी उस दिशा
में प्रयास करने की जरुरत है।
2019 में, भारत ने एक एंटी-सैटेलाइट वेपन टेस्ट किया था, जिसका नाम 'मिशन शक्ति' था जो मूविंग सैटेलाइट्स पर हमला करने वाली मिसाइल बेस्ड सिस्टम है, इस एंटी सैटेलाइट सिस्टम को DRDO और ISRO ने जॉइंटली डेवेलप किया है। भले ही इस टेस्ट की अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने आलोचना की थी, लेकिन इसके बावजूद भारत ने अपने स्पेस डिफेन्स मिशन को जारी रखा। वहीँ चीन और अमेरिका पहले ही इस तरह के टेस्ट मिशन कर चुके हैं।
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